आज श्री गजानन महाराज प्रकट दिवस

श्री गजानन महाराज की प्रसिद्धि पूरे विश्व भर में है और उन्हें किसी भी प्रकार के परिचय की आवश्यकता नहीं और इस संसार में शायद ऐसा कोई भी नहीं है जो उनके बारे में कुछ बताने में या कह पाने में समर्थ हो।

गजानन महाराज शेगांव
दैनिक म्हारो स्वदेश
शेगांव, महाराष्ट्र राज्य के अकोला शहर से कुछ किलोमीटर दूर जिला बुलढाणा के अंतर्गत आता है और यहीं पर श्री गजानन महाराज पहली बार देखे गए जिसे उनके प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके जन्म और जन्म स्थान के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं है। जब उन्हें पहली बार देखा गया तब वह एक युवक थे और वे झूठी पत्तलों से खाना उठा कर खा रहे थे।



जिस समय श्री गजानन महाराज को पहली बार देखा गया अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से वह दिन 23 फरवरी 1878 का दिन था और हिंदू अमांत पंचांग के अनुसार वह तिथि माघ महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि थी। तिथि अनुसार यही दिन गजानन महाराज प्रकट दिन के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री गजानन महाराज के मंदिरों से पालकी निकाली जाती है और उनकी चरण पादुका का पूजन किया जाता है।

प्रकट दिन मुहूर्त


दिन बुधवार
दिनांक 23 फरवरी 2022
माघ (फाल्गुन-पूर्णिमांत) कृष्ण सप्तमी


चरण पादुका पूजन


शेगांव में इस दिन भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है इस दिन “श्री” की पालकी निकाली जाती है तथा देश भर से लोग मंदिर में दर्शन के लिए जमा होते हैं तथा दासगणू रचित श्री गजानन विजय ग्रंथ जिसमें गजानन महाराज की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है उसका पारायण भी करते हैं।

श्री गजानन विजय ग्रंथ अपने आप में एक सिद्ध ग्रंथ है जिसका पारायण करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ऐसी इसकी महिमा है। इस ग्रंथ का पारायण गजानन महाराज प्रकट दिन के एक सप्ताह या तीन दिन पहले शुरू करना चाहिए और प्रकट दिवस पर इसका पारायण पूर्ण करना चाहिए इससे श्री गजानन महाराज की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।

अगर किसी कारण से इस संपूर्ण ग्रंथ का पारायण करना संभव ना हो तो इसमें दिया हुआ 21 वां अध्याय अवश्य ही पढ़ना चाहिए क्योंकि इस अकेले अध्याय में संपूर्ण ग्रंथ पारायण करने का पुण्य समाहित है। इस दिन गजानन महाराज बावन्नी का पाठ भी अवश्य करना चाहिए।

गजानन महाराज पालकी
दैनिक म्हारो स्वदेश

वैसे इस ग्रंथ का परायण दशमी तिथि से शुरू करके द्वादशी तिथि को यानी कि 3 दिन में भी किया जा सकता है। ऐसी भी मान्यता है कि गुरुपुष्यामृत (जिस गुरुवार को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र मैं स्थित हो) के दिन भी इस ग्रंथ का सम्पूर्ण पाठ या केवल 21वे अध्याय का पाठ करने से संपूर्ण पुण्य की प्राप्ति होती है।

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